क्या है गर्भपोषक किट? What is Garbhposhak Kit?
आयुर्वेद के विभिन्न ग्रंथों में गर्भ के विकास के लिए विभिन्न औषधियाँ विभिन्न स्वरुप में बताई गई है ।
गर्भ का समय मनुष्य जीवन का सब से संवेदनशील समय माना जाता है क्योंकि उसी समय मनुष्य का विकास एवं विभिन्न अंगोपांग का विकास होता है । उस समय विशेषकर स्वभाव-मन-बुद्धि इत्यादि का निर्माण होता है । इसलिए औषधियों का सेवन करना होता है, जिससे शिशु का एवं माँ का दोनों का स्वास्थ्य बना रहे ।
आयुर्वेद में गर्भावस्था एवं शिशु के संरक्षण एवं पोषण के लिए औषधियाँ बताई गई हैं । हमारी संस्था के गुरुजी पू. विश्वनाथजी ने अनेकविध प्रकार का उपयोग करके अपने चिकित्सा कार्य में इसी औषधियों का प्रयोग करके गर्भ संबंधित कई रोगों का समाधान दिया है ।
यह औषधि किट नहीं अपितु घर का Gynecologist (स्त्रीरोग विशेषज्ञ) है
आयुर्वेद की हर एक कल्पना (Form) का विशेष महत्व है, जैसे स्वरस, कल्क (चटनी), कवाथ, हिम, फांट, चूर्ण, अवलेह, तैलम् घृतम्, पाक, वटी, आसव, अरिष्ट इत्यादि ।
एलोपथी में विभिन्न प्रकार की दवाईयाँ आती हैं, जैसे Iron, Calcium, Folic Acid, Multi Vitamins etc.
उसी तरह आयुर्वेद में भी गर्भ को विकास, संरक्षण एवं शिशु के विकास के लिए विविध चूर्ण, वटी, गुटी, रस, सुवर्णप्राशनम् एवं अवलेह, घृत इत्यादि बताया गया है ।
हमने इन सभी प्रकारो पर वर्षों तक संशोधन कार्य करके पूज्य गुरुजी के गर्भ संस्कार केन्द्र में वर्षों तक इन औषधियों को दिया है और इसके बहुत सकारात्मक परिणाम मिले हैं ।
इस किट की सभी औषधियों का सेवन करने से सम्पूर्ण लाभ मिलता है क्योंकि सभी औषधियों की अलग-अलग विशेषता है तथा यह सभी की आवश्यक्ता भी है ।
गर्भावस्था में स्वर्ण की विशेष आवश्यकता होती है क्योंकि गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क के सम्पूर्ण विकास के लिए सुवर्ण बहुत आवश्यक है ।
गर्भस्थ शिशु का शरीर अविरत विकसित होता रहता है तथा पाँचवेंए छठे एवं सातवें महीने में मन बुद्धि ओज का विकास होता है । उस समय गर्भ सुवर्णप्राशनम् विशेष रुप से प्रभावी होता है। यह सुवर्णप्राशनम् फल घृतम् द्वारा प्रक्रिया करके बनाया जाता है ।
सम्पूर्ण भारत में केवल गुरुजी ने अपनी विशेष फार्मूला के आधार पर बनाकर यह अनेक गर्भवती महिलाओं को दिया गया है और इससे गर्भ के विकास में अनेक लाभ पाये गये हैं ।जैसे शिशु की बुद्धि एवं मन का विकासए मस्तिष्क का विकासए कफ.वात.पित्त का संतुलन होनातथा बच्चों की प्रकृति स्वस्थ करने में बहुत लभदायक सिद्ध होता है ।
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गर्भ-पोषक प्राशनम् (फल घृत सहित)
आयुर्वेद में बताई गई यह विभिन्न औषधियोंए जैसे ब्राह्मी, शंखपुष्पी, शतावरी इत्यादि का संयोजन करके विशेष अवलेह बनाया जाता है, जो गर्भवती महिला एवं शिशु दोनों का संरक्षण करता है ।
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शतावरी, अश्वगंधा, नागकेशर, रजत भस्म जैसी औषधियों से निर्मित यह पाउडर गर्भ एवं गर्भिणी दोनों का पोषण करता है और गर्भ के विकास में सहायता करता है। गर्भिणी को शक्ति प्रदान करता है।
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जीवंती, शतावरी, शतपुष्पा जैसी गर्भ पोषक औषधियों का क्वाथ करके यह सिरप बनाया जाता है । यह हानिकारक चीनी के बदले प्राकृतिक खड़ी शक्कर से बना सर्व प्रथम सिरप है ।
इस सिरप के नियमित सेवन से गर्भ का विकास एवं पोषण होता है एवं गर्भावस्था में होनेवाली विविध समस्याओं से मुक्ति मिलती है । इसका स्वाद अच्छा होने के कारण यह आसानी से लिया जा सकता है । इससे उल्टी इत्यादि की समस्या नहीं होती है ।
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आयुर्वेद में गर्भ और गर्भिणी दोनों का स्वास्थ्य अच्छा रह सके उसके लिए बहुत सारे उपाय बताये गए हैं । आयुर्वेद के ग्रंथो में प्रतिमाह गर्भावस्था में गर्भ का विकास होता रहे और साथ ही गर्भिणी का स्वास्थ्य भी बना रहे इसलिए विभिन्न औषधियाँ बताई गई है, जैसे कि शतावरी, विदारीकंद, नागकेसर जैसी औषधियाँ गर्भ का पोषण करके गर्भस्थ शिशु के सर्व अंगो का विकास करती है और साथ-साथ गर्भिणी को शारीरिक एवं मानसिक शक्ति प्रदान करती है । वर्षों के संशोधन कार्य के बाद चिकित्सा में उपयुक्त गर्भपोषक कैप्सूल बहुत लाभप्रद सिद्ध हुई है ।
यह गर्भावस्था में प्रत्येक महीने में गर्भ का विकास तथा गर्भीणी के स्वास्थ्य का रक्षण करता है ।
ब्राह्मीए शंखपुष्पी, जटामासी, जैसी औषधियों से गर्भिणी का मन शांत होकर गर्भस्थ शिशु का अच्छा मानसिक विकास होता है ।
यष्टिमधु, शतावरी जैसी औषधियों से गर्भिणी तथा गर्भ दोनों को पोषण मिलता है । गर्भावस्था में शक्ति प्रदान करता है तथा कमजोरी को दूर करता है ।
नागकेसर गर्भ का पोषण करता है और शक्ति संरक्षण का कार्य करता है। गर्भावस्था में गर्भस्त्राव तथा गर्भपात होने से बचाता है ।
अश्वगंधा, विदारी कंद जैसी औषधियाँ शक्ति का संचार करके अशक्ति को दूर करती है ।
गर्भपोषक कैप्सूल गर्भाशय को मजबूत करती हैऔर बार-बार होनेवालें गर्भपात को रोकती है ।
गर्भावस्था में होनेवालें विकारो या तकलीफों में भी लाभदायी है ।
सिरप क्यों बनाया गया है क्या यह आयुर्वेद में वर्णित है?
आयुर्वेद के ग्रंथ में विभिन्न क्वाथ.कषाय कल्पना स्वरुप बताया गया है । क्वाथ.कषाय का एक स्वरुप सिरप है ।
सिरप सेवन करने में सब से सुविधाजनक है । इसको आसानी से रखा जा सकता है या सेवन किया जा सकता है । सिरप में घुली हुई औषधियाँ आसानी से पाचन हो जाती है । औषधियों के तीन स्वरुप होते हैं । घन, प्रवाही और वायु स्वरुप ।
प्रवाही स्वरुप औषधियाँ आसानी से पचकर विभिन्न तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव दिखाती हैं ।
सिरप बहुत सारी कम्पनियाँ बनाती हैं पर उसमें 50 % चीनी का उपयोग होता है और वह कम्पनियाँ सल्फर युक्त चीनी का उपयोग करती है जिसके दुष्प्रभाव होते है। उसकी बजाय प्राकृतिक रुप में प्राकृतिक खड़ी शक्कर युक्त विविध प्रकार के सिरप बनाए हैं । जिसके उपयोग से कोई हानि नहीं होती और इसकी प्रक्रिया प्राकृतिक होने से किसी भी प्रकार की हानि नहीं है ।